Wednesday, 15 April 2020

जाओ मगर, जल्दी आना

जाओ मगर... जल्दी आना.. 

कल जब तुम शायद, आखिरी बार मिलोगी मुझसे, 
सिर्फ मेरे चेहरे पर ही, अपनी निगाहों को सीमित रखना, 
मेरा मन न टटोलना.. 
मेरे हस्ते चेहरे से बस इतना ही भाँप लेना, 
कि मैं खुश हूँ... 
मगर एक टक यूँ निहारना भी सही न हो शायद, 
मुस्काते हुए, आँसुओं को रोकना 
थोड़ा मुश्किल होगा.. 
ये सैलाब तुम्हारे जाने के बाद ही आये तो बेहतर है, 
मैं तुम्हारे सपनों को, इस बाढ़ मे बहते देख नहीं सकता.. 

कल जब तुम शायद, आखिरी बार मिलोगी मुझसे, 
देखूँगा मैं, क्या इस बार भी तुम, 
बिना बताये, मेरे ही रंग के कपड़ो मे सामने आती हो.. 
और अगर ऐसा होता है... तो इस राज़ से कल तुम्हे पर्दा तो उठाना होगा... 
कैसे तुम्हे बिना बताये ये पता लग जाता है... 
तुम्हे मुझे बताना होगा.. 
मगर कल बोलने का काम सिर्फ तुम ही करना, 
ज्यादा बोलना मेरे लिए ठीक न होगा, 
और ऐेसेभी तुम हमेशा कहती थी, 
कि मैं सुनता नहीं बात तुम्हारी कोई, 
कल का दिन, इस शिकायत का भी आखिरी दिन होगा

तुम्हारा दिया हुआ पहला गुलाब, 
आज भी, मेरी डायरी के उन्ही दो पन्नों के बीच जवान है, 
एक तरफ मेरी पहली कविता जो तुमने पढ़ी थी, 
दूसरी तरफ, लाल लिपस्टि मे लिपटे तुम्हारे होठों के निशान है, 
तुम्हारी गैर हाज़िरी मे अब, 
उस गुलाब से ही तुम्हारी खबर लेता रहूँगा, 
वादा तो नहीं कर सकता, 
मगर कहता हूँ, बस मान लो, 
मैं खुश रहूँगा।।