Sunday, 14 August 2016

तुम न होते , कुछ न होता....

तुम न होते , कुछ न होता,
ज़ंजीरें होतीं , दर्द होता,
चीखें होतीं, जखम होता,
होती ख्वाहिशें तब भी,
मगर
पंख ख्वाहिशों का मेरे ही ज़हन में दफ़न होता,
तुम न होते , कुछ न होता।

भूख होती, दाना होता,
अधिक एक निवाले के लिए, पर हर्जाना होता,
लोग होते, ज़माना होता,
जो दिखा उसे सच बोला तो, हवालात भी जाना होता,
बारिश होती तो,
धूप भी खरीद कर सुखाना होता,
होता अखबार हमारा,
छपता वही जो उनको बताना होता,
तुम हो तो दामन मेरा आज बेदाग़ है,
तुम न होते , कुछ न होता ।

तुम न होते, मैं न होती,
देश होता, माँ न होती ।
है गौरव तू हिन्द का,
जहाँ नस - नस में गंगा - जमुनी तहज़ीब बहती है,
यहाँ गोली सीने पर एक की लगती है, और दो दो माँएं रोती हैं।
आबरू मेरी, हर पल मांगे लहु तेरा,
तूने आँचल भी सर से सरकने न दिया,
आज़ादी होती, साल  70 न होता,
तुम न होते , कुछ न होता।।

Wednesday, 10 August 2016

थोड़ा इंतज़ार करो...

जो बीत गया, उसपर न आंसुओं को ज़ार ज़ार करो,
फिर नई सुबह होगी, थोडा इंतज़ार करो।

रंगीनियत परदे पर जो न आ सकी, कोई बात नहीं,
रह परदे के पीछे ही, आगे का इंतज़ाम करो।

बहुतों ने आँसुओं से आँख सेका है,
किस्मत को सामने गली से गुज़रते देखा है,
यूँ न तरसो के रंग कब बरसेगा,
जब बरसेगा तब बरसेगा, तब तक थोडा आराम करो।

होंगे वो और जो पहले वार में चटक के टूट जाएँ,
ख़ास हो तुम, नई अदब से हुंकार भरो।

अजब नहीं, पर थोड़ी गज़ब जरूर है ये दुनिया,
सत्य का प्रमाण मांगती और अवैध को सलाम करती है,
होते कौन हो तुम इसे बदलने वाले,
जाओ जा कर अपना काम करो।

क्यों चेहरे से रोते हो,
दिल तो दिल ही है, इसे दरिया क्यों कहते हो,
कीमत हमारी आसुओं की जाननी हो तो
पहले खुद का कुछ नुक्सान करो।

राह मुश्किल किसकी न रही, पर मंज़िल परवाह करती है,
प्रहर दर प्रहर बीत गए, ये प्रहर भी बीत जायेगा,
तडक़े सूरज उठेगा , चेहरा उम्मीद का खिल जायेगा,
चलो गिरे हुए महल का नव निर्माण करो,
फिर सुबह होगी , थोड़ा इंतज़ार करो।।