Wednesday, 10 August 2016

थोड़ा इंतज़ार करो...

जो बीत गया, उसपर न आंसुओं को ज़ार ज़ार करो,
फिर नई सुबह होगी, थोडा इंतज़ार करो।

रंगीनियत परदे पर जो न आ सकी, कोई बात नहीं,
रह परदे के पीछे ही, आगे का इंतज़ाम करो।

बहुतों ने आँसुओं से आँख सेका है,
किस्मत को सामने गली से गुज़रते देखा है,
यूँ न तरसो के रंग कब बरसेगा,
जब बरसेगा तब बरसेगा, तब तक थोडा आराम करो।

होंगे वो और जो पहले वार में चटक के टूट जाएँ,
ख़ास हो तुम, नई अदब से हुंकार भरो।

अजब नहीं, पर थोड़ी गज़ब जरूर है ये दुनिया,
सत्य का प्रमाण मांगती और अवैध को सलाम करती है,
होते कौन हो तुम इसे बदलने वाले,
जाओ जा कर अपना काम करो।

क्यों चेहरे से रोते हो,
दिल तो दिल ही है, इसे दरिया क्यों कहते हो,
कीमत हमारी आसुओं की जाननी हो तो
पहले खुद का कुछ नुक्सान करो।

राह मुश्किल किसकी न रही, पर मंज़िल परवाह करती है,
प्रहर दर प्रहर बीत गए, ये प्रहर भी बीत जायेगा,
तडक़े सूरज उठेगा , चेहरा उम्मीद का खिल जायेगा,
चलो गिरे हुए महल का नव निर्माण करो,
फिर सुबह होगी , थोड़ा इंतज़ार करो।।

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