इन रगों में लहु,
हर दम में, साँस का कतरा भरने वाला,
कोई तो है।
बारिश में भीगने की वज़ह,
बेवज़ह होठों पर हँसी बिखेरने वाला,
कोई तो है।
कवि के कलम में मिठास,
सावन के अंधे को, हरियाली का आभास कराने वाला,
कोई तो है।
नज़रें ऊपर उठती हैं, तो ज़ुबां पर चुप्पी क्यों,
ज़ुबां का ताला खुले अगर जो,
फिर ये नज़रें झुकती क्यों,
फ़ासले हों तो मन उदास क्यों,
पर जब हो दीदार , तो बेसब्री का लिबास क्यों।
सपना ही अगर है ये,
तो सपने में ही चेहरे पर मीठी एक रेखा खींचने वाला,
कोई तो है।
कोई तो है , कि ज़िन्दगी दो पल से ज़्यादा लगती है,
आग का दरिया नहीं, एक ख़ूबसूरत सा वादा लगती है,
निभाना कोई मुश्किल नहीं, आसान है,
कोई तो है जिसके लिए मेरे हाथों में पूरा आसमान है।
तुम हो हक़ीक़त या नहीं,
ख़बर नहीं हमें,
रखना भी चाहे कौन,
जो मिल गयी , मर जाऊँ ख़ुशी से,
न मिली जो , फिर आँखों से लहु बहाए कौन।
जो हो, जहाँ हो,
दुआ सलामती की पहुँचती रहेगी,
किसी की दिलग्गी को भुलाया है तुमने,
अब तुम्हे दिल-ऐ-अज़ीज़ में पनाह से बचाये कौन ।
इन रगों में लहु,
हर दम में साँस का कतरा भरने वाला,
कोई तो है।।
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