Monday, 3 May 2021

शायद तुम भूल चुकी हो

हँसाना बखूबी आता है तुम्हें,
मगर हँसना शायद तुम भूल चुकी हो,
अपनी मुस्कुराहट को होठों से, दिल तक पहुंचाने का रास्ता,
शायद तुम भूल चुकी हो,
सबकी आंखों से आंसू बखूबी पोछती हो,
मगर खुद रोना शायद तुम भूल चुकी हो,
गड़े हैं ज़ख्म जो दिल में तुम्हारे,
उन्हें आंखों तक पहुंचाने का रास्ता,
शायद तुम भूल चुकी हो....
घर का हर कोना तुमसे खिल उठता है,
मगर अपनों के लिए , सपनो का घर बनाते बनाते,
अपने सपने, शायद तुम भूल चुकी हो...

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