ऐ ज़िन्दगी,
क्यों भाग कर खुद को यू थका रही हो,
कभी मिलो चाय की दुकान पर...
बड़े दिन हो गए, तुमसे मुलाकात नही हुई,
यू तो पहले घंटो बातें करते थे हम,
वक्त फिर भी कम लगता था,
तुम खुद को मेरी आँखों मे खोजती थी , और मैं तुम्हे,
बस खो न जाये ये चेहरा,
यही डर लगता था,
मुस्कान पर तुम्हारे, लाखो कुर्बान थे,
मगर तुम हस्ती थी बस मुझ पर,
मैं तो बस ये देखता था कि
कोई नज़र न डाले तुझ पर...
मेरे कोरे कागज़ों पर स्याही फेरने का कारण थी तुम,
हर एक मर्ज का इलाज,
हर एक अनसुलझी पहेली का निवारण थी तुम....
कहाँ हो,
तुम्हारे लापता वाले पोस्टर भी
अब रंग छोड़ने लगे हैं,
FIR वाली रजिस्टर भी अब काफी पुरानी हो गयी होगी,
वो कहते हैं , उम्मीद छोड़ दो,
अब तक तो तुम किसी और कि हो गयी होगी..
कभी तो रोना आता है,
कभी हँसी,
और कभी ज़ोर के ठहाके मारने को जी चाहता है,
तुम्हारे बारे में जहर फैलाने वालों के गालों पर
एक चमाट धरने को जी चाहता है,
पर अकेले मैं क्या क्या कर पाऊंगा,
और हम दोनों की बस एक ही तस्वीर है,
एक तस्वीर से सारी दुनिया का मुँह कैसे बंद कर पाऊंगा...
इसलिए तो कहता हूं कि,
ऐ ज़िन्दगी,
क्यों भाग कर खुद को यू थका रही हो,
कभी मिलो चाय की दुकान पर...
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