Thursday, 28 April 2016

कुछ और था....

के वो नज़रें उठती रहीं गिरती रहीं ,
हर नज़र खुद में लहर,
पर
आपकी नज़रों से जो घायल हुए ,
हाय ! वो नज़राना कुछ और था।।

आरज़ू लिए वफ़ा की
हमने वफ़ा की चादर बिछाई
वो सिक्का चढ़ा के बढ़ गए,चढ़ाना कुछ और था।।

की नाउम्मीदी की हाला पीने वाले,
डर -सहम उम्मीद का जुआ खेलते हैं,
पर
आज फिर हार गए उस हँसी पर सब,
हाय ! उनका मुस्काना कुछ और था।।

कहते हैं कि वो बेजुबां लठ का मालिक,
जाने कब अपना हिसाब सुना दे,
गर डरते तो उनकी कसम को यूँ पनाह न देते
पर
हाय गिरे हम जान कर
वो कसम खाना और था निभाना कुछ और था।।

के इश्क़ का समंदर ये
शांत जितना,
गोद में गहराई उसके उतनी ही आतुर
जा फंसे तो जा फंसे
अब रोष नहीं
उनका दिल में आना कुछ और था
अलग बात है कि
बाद दिल जलाना कुछ और था।।

हैं जानते की मौका दूसरा
चुनिँदो को ही बख्शता है खुदा
पर
बख्श दिया तुझे सारे इल्ज़ामों से जा
तू भी क्या याद करेगी
के तेरा दीवाना कुछ और था।।

Saturday, 23 April 2016

मैं कोई फूल नहीं....

मैं कोई फूल नहीं,
फिर भी
कुचल दिया मुझे जो सरेआम
इसमें तेरी कोई भूल नहीं...
जितने कदम ऊपर से गुज़रे हैं
सुगन्धित ही हुए
क्योंकि प्रतिशोध हमारा उसूल नहीं।।

छलकता नहीं, मैं कोई जाम नहीं,
फिर भी
जो बिछड़ा यार मिला मयखाने में
वो हराम नहीं....
कई मर्ज़ भी दूर हुए है और मरीज़ आज भी मुरीद बने फिरते हैं
सिर्फ यादे भुलाना ही हमारा काम नहीं।।

मैं कोई बर्फ नहीं,
फिर भी
जो दिल उनकी बातों से पिघल जाये
कोई हर्ज़ नहीं...
हाथ थामा है तो साथ निभाएंगे जरूर
मगर उनके दूर जाने पर भी जो अपनी सांस चले
तो हम मर्द नहीं।।

मैं कोई घर नहीं
फिर भी
भाइयों ने आज आँगन दो कर लिए
कोई कितना कहे
असर नहीं
जो टूट जाता है
सहारा सबका पाता है
पीछे इस "सहारे" के स्वार्थ सबका छिप जाता है
टूटता वो तारा भी इससे बच न पाता है
मगर जो टूट जाये बाजू के पथराव से
वो कोई शीश महल जरूर होगा
पर घर नहीं
है ऐसे कई जो सोख लेते हैं
बाजू के छीटें
सहूलियत से
औकात वाली दुनिया की रेल में
मामूली डब्बे के सवारी वो
पर
कमज़ोर उनकी जड़ नहीं।।

मैं कोई चाँद नहीं
फिर भी
जो हमारे चेहरे की तारीफ
दाग से शुरु और दाग पे खत्म  जो हो
कोई ग़म नहीं
जो दिखता है वो ही बिकता है
आपकी तारीफ हमारे लिए कोई सितम नहीं
पर दिखा दो दूजा ऐसा कोई
जो
ताप झेल कर भी शीत न्याछावर करता है
छाले पड़ गए हाथ पाँव में
ऐसे
जिसका कोई मरहम नहीं।।

Friday, 15 April 2016

आँखोंदेखी

कभी मौसम बदलते देखा
फिर लोगो को मौसम बनते देखा
कभी कठपुतलियों का खेल देखा
फिर लोगो को कठपुतलियों में ढलते देखा
कभी मैली गंगा देखी
फिर लोगो को गंगा को मैला करता देखा
कभी काशी देखा, काबा देखा
लोगो को ठगने वाला संत
और लूटने वाला बाबा देखा
कभी इंसान को नेता बनता देखा
फिर हर जगह उस नेता को देखा
मगर उस इंसान को दोबारा किसी ने न देखा
कभी लोगो को आवाज़ उठाते देखा
मोठे फ्रेम वाले चश्मों के पीछे से
कभी उन विद्रोह भरी आँखों को देखा
आज उन्ही लोगो को चश्मा उल्टा लगाये देखा
चेहरे पे मुस्कान और जुबान पे कत्था
कोतवाल साहब के तोंद को
खाखी बटन की सलाखों के पीछे से झांकता देखा
कभी बाजू के घर की चिल्लम चिल्ली को शांत कोने से छिप छिप के देखा
फिर कुछ लोगो को मेरे ही घर पर टकटकी लगाये देखा.....

न अभिमान कर तू आज का
न शोक मना उस साज़ का
आसान नहीं यहाँ इस दिल को बहला लेना
मगर अभी रंज ओ ग़म और भी हैं...
कोई मिले न मिले .....न मिले दोबारा
परवाह नहीं...
दिल बहलाने वाले और भी हैं...

ये प्रेम की नगरी है
दिल लगाना यारो सभी से मगर
सौदा दिल का मत करना
यहाँ मौके का फायदा उठाने वाले और भी हैं

और कर ही लिया जो सौदा अगर
तो मयखाने में तू अकेला जाये, ऐसा भी नहीं
साथ देने वाले ...और भी हैं

यहाँ हर प्याला नम
टूटता हर प्याले के साथ यहाँ हर ग़म भी है
ज़रा देख इधर
बाजु वाली कुर्सी में तेरे हम भी हैं।।

Thursday, 14 April 2016

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम...

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम,
आँखों से दर्द हम बहा भी न पाये,
और जो दर्द छलक उठे भी अगर तो,
ज़माने के नज़र में वो आ भी न पाये,
रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम।।

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम,
के छलकता वो जाम भी बेअसर ही जाये,
और नशे से ये नैन निशामय हुए भी अगर तो,
ऊपर से वो चँदा अपना यौवन दिखाए,
रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम।।

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम,
कि न मंदिर में पनाह मिले, न ही बसेरा मस्जिद में हो पाये,
जो सीढियां चढ़ चढ़ के दर पर कदम रख भी लिया
तो मुखातिब उस रब से हो ही न पाये,
रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम||