कभी मौसम बदलते देखा
फिर लोगो को मौसम बनते देखा
कभी कठपुतलियों का खेल देखा
फिर लोगो को कठपुतलियों में ढलते देखा
कभी मैली गंगा देखी
फिर लोगो को गंगा को मैला करता देखा
कभी काशी देखा, काबा देखा
लोगो को ठगने वाला संत
और लूटने वाला बाबा देखा
कभी इंसान को नेता बनता देखा
फिर हर जगह उस नेता को देखा
मगर उस इंसान को दोबारा किसी ने न देखा
कभी लोगो को आवाज़ उठाते देखा
मोठे फ्रेम वाले चश्मों के पीछे से
कभी उन विद्रोह भरी आँखों को देखा
आज उन्ही लोगो को चश्मा उल्टा लगाये देखा
चेहरे पे मुस्कान और जुबान पे कत्था
कोतवाल साहब के तोंद को
खाखी बटन की सलाखों के पीछे से झांकता देखा
कभी बाजू के घर की चिल्लम चिल्ली को शांत कोने से छिप छिप के देखा
फिर कुछ लोगो को मेरे ही घर पर टकटकी लगाये देखा.....
न अभिमान कर तू आज का
न शोक मना उस साज़ का
आसान नहीं यहाँ इस दिल को बहला लेना
मगर अभी रंज ओ ग़म और भी हैं...
कोई मिले न मिले .....न मिले दोबारा
परवाह नहीं...
दिल बहलाने वाले और भी हैं...
ये प्रेम की नगरी है
दिल लगाना यारो सभी से मगर
सौदा दिल का मत करना
यहाँ मौके का फायदा उठाने वाले और भी हैं
और कर ही लिया जो सौदा अगर
तो मयखाने में तू अकेला जाये, ऐसा भी नहीं
साथ देने वाले ...और भी हैं
यहाँ हर प्याला नम
टूटता हर प्याले के साथ यहाँ हर ग़म भी है
ज़रा देख इधर
बाजु वाली कुर्सी में तेरे हम भी हैं।।
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