Thursday, 14 April 2016

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम...

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम,
आँखों से दर्द हम बहा भी न पाये,
और जो दर्द छलक उठे भी अगर तो,
ज़माने के नज़र में वो आ भी न पाये,
रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम।।

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम,
के छलकता वो जाम भी बेअसर ही जाये,
और नशे से ये नैन निशामय हुए भी अगर तो,
ऊपर से वो चँदा अपना यौवन दिखाए,
रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम।।

रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम,
कि न मंदिर में पनाह मिले, न ही बसेरा मस्जिद में हो पाये,
जो सीढियां चढ़ चढ़ के दर पर कदम रख भी लिया
तो मुखातिब उस रब से हो ही न पाये,
रूठ जाना कभी न तुम ऐसे सनम||

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