Saturday, 15 April 2017

इंसान मैं हारा हुआ निकला..

यश और जीत की उम्मीद में,
मैं अपनों से जी चुरा निकला,
जीती दुनिया , पैसा भी,
पर इंसान मैं हारा हुआ निकला।

खुद के रिश्ते चीर फाड़ कर,
मैं दुनिया के दिल में बनाने जगह निकला,
दिल खोलकर अपनाया उसने,
पर मैं उसके लिए भी बेवफा निकला।

उम्मीद जग जाये तो हिम्मत बंध जाती है,
इस उम्मीद में मैं बनाने दुनिया के लिए उम्मीद का महल निकला,
पर अपनों की जब साँसें अंतिम चल रही थीं, मैं बाजू से टहल निकला।

सिखाती है दुनिया, आगे बढ़ने के लिए ठगना पड़ेगा,
जुमला मैं ये अपनों पर ही चढ़ा निकला,
दुनियादारी तो सीख ली मगर,
रिश्तेदारी में फिसड्डी बहुत बड़ा निकला।

था मेरा भी परिवार कभी,
खुद की ख़ुशी के लिए मैं उनका गला दबा निकला,
जीती दुनिया, पैसा भी ,मगर
इंसान मैं हारा हुआ निकला।।

Thursday, 13 April 2017

तुम मुझे सुन सकती हो तो सुन लो,
मैं खुश हूँ।

Tuesday, 11 April 2017

क्यों न पूछूँ..

क्यों न पूछूँ कि तुम्हारा हाल कैसा है,
तुम सोचते हो कि भला ये सवाल कैसा है?
क्यों न फोन मिलाऊँ दफ्तर में तुम्हें,
ये जानने कि आज खाने का कमाल कैसा है?
क्यों न पूछूँ कि तुम्हारा हाल कैसा है?

सफेदी की परत चढ़ा कर जो रुमाल देती हूँ,
घर आते आते दागदार हो जाता है
तो क्यों न पूछूँ भला कि आज रुमाल कैसा है?
तो क्यों न पूछूँ कि हाल कैसा है?

घर से निकलते हो तो सब्ज़ियों से ताज़े रहते हो,
घर आते आते चेहरा क्यों बेहाल ऐसा है?
और वैसे आज तो पहली तारीख है,
फिर आज चेहरे पर ये मलाल कैसा है?
अब माथे कि शिकन से क्या क्या अंदाज़े लगाऊं,
इसलिए तो पूछ लेती हूं कि हाल कैसा है?

सारे हाथों का बोझा खुद पर ले लेते हो,
और पगार कि लाइन में सबसे पीछे रहते हो,
वाह वाही भर भर घर लाते हो,
और पैसे मांगू तो ठेंगा दिखाते हो
हालत तुम्हारी मुझसे छिपी नहीं,
पर तुम्हारे इंतज़ार में बैठे बैठे,
मन में उठता ये उबाल जाने कैसा है?
मैं निर्दोष हूँ, मन बांवरा,
यही कहता है तो पूछती हूँ तुमसे
कि तुम्हारा हाल कैसा है?
और तुम सोचते हो कि ये सवाल कैसा है?


Wednesday, 5 April 2017

मौसम बदल रहा है

मौसम बदल रहा है,
हर वक्त लगता है जैसे कहीं,
कोई लम्हा हाथ से फिसल रहा है
मौसम बदल रहा है।

धड़कने अब उफान मारने लगी हैं,
मन बिखरे रिशतों को समेटने में लगा है,
दिमाग यादों को सहेज कर सजा रहा है,
दोस्त एक दूसरे के नाम पैगाम लिख रहे हैं,
मुँह जिन्होंने फेरा था , पास आने के बहाने ढूंढ रहे हैं,
मोहब्बत करने वाले , दिल को समझाने में लगे हैं, मोहब्बत जिन्हें रास न आयी, वो अगली के पटाने में लगे हैं,
आँखों में निस दिन बाढ़ के संकेत दिखाई देते हैं,
जाने बाँध कब टूट जाये
ये सैलाब कब फूट जाये,
बैठे बैठे , हृदय जाने क्यों मचल रहा है,
शायद इसने भी भाप लिया है,
के मौसम बदल रहा है,
हर वक्त जैसे कहीं कोई लम्हा
हाथ से फिसल रहा है,
मौसम बदल रहा है।