यश और जीत की उम्मीद में,
मैं अपनों से जी चुरा निकला,
जीती दुनिया , पैसा भी,
पर इंसान मैं हारा हुआ निकला।
खुद के रिश्ते चीर फाड़ कर,
मैं दुनिया के दिल में बनाने जगह निकला,
दिल खोलकर अपनाया उसने,
पर मैं उसके लिए भी बेवफा निकला।
उम्मीद जग जाये तो हिम्मत बंध जाती है,
इस उम्मीद में मैं बनाने दुनिया के लिए उम्मीद का महल निकला,
पर अपनों की जब साँसें अंतिम चल रही थीं, मैं बाजू से टहल निकला।
सिखाती है दुनिया, आगे बढ़ने के लिए ठगना पड़ेगा,
जुमला मैं ये अपनों पर ही चढ़ा निकला,
दुनियादारी तो सीख ली मगर,
रिश्तेदारी में फिसड्डी बहुत बड़ा निकला।
था मेरा भी परिवार कभी,
खुद की ख़ुशी के लिए मैं उनका गला दबा निकला,
जीती दुनिया, पैसा भी ,मगर
इंसान मैं हारा हुआ निकला।।
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