जब हाथों ने खंजर थाम ही लिया
तो लहु से क्यों तू डरता है,
जो गिर-गिर कर ही जीना है
फिर काहे तू संभलता है,
जो करेजा पत्थर नहीं तेरा,
कहे से मुँह तूने फेरा,
फिर काहे तू खुद को,
यूँ मर्द कहता फिरता है।।
"ख़ुदा" का हाथ, सर तेरे,
तो खुद को मर्द समझता है ?
समय - पतवार साथ तेरे ,
तो खुद को मर्द समझता है ?
"चाहत" मेरी ,साथ तेरे ,
तो खुद को मर्द समझता है ?
इतराता है के तेरे ज़ेहन ओ मन
में बस्ती आज नगरी है....?
मगर गंगा जो तुझ तक पहुँची है,
वो मुझी से हो के गुज़री है!!
हँस ले आज ,
गा ले आज,
कोई गीत गुनगुना ले आज,
तज़ुर्बा कहता है,
के कभी मेरा भी दौर था,
हाल ए दिल जो तेरा है
कभी अपना भी ठौर था,
मैं आँखें मीचूं और तन मन भिगो दो तुम
बस इतना ही चाहा था
उसने बस पलकें भिगो दीं
उनका इरादा ही कुछ और था ।।
Tuesday, 30 June 2015
मर्द हो तुम ?
Saturday, 27 June 2015
मैं वाकिफ़ हूँ....
आँखों में तुम्हारे ,ज़माना दिखता है,
उस ज़माने से वाकिफ़ हूँ,
हर वक्त ,वज़ह-बेवजाह् कहना ज़रूरी नहीँ,
जो तुम्हारी आँखों को ,
क़िताब से भी बेहतर पढ़ ले,
उस "दीवाने" से वाकिफ़ हूँ।।
तुम्हारे चंचल मन को,
जिन उत्तर की तलाश है,
हर उस सवाल से वाकिफ़ हूँ,
जो तुम्हारे घातक नैन-बाण ,
मुझ तक आके थम गए ,
तो अंतर्मन के उबाल से वाकिफ़ हूँ।।
कोरे काग़ज़ पर कई हर्फ़ उकेरे,
रस-प्रेम से लबरेज़,
हर इक हर्फ़ में लुप्त ,उस राज़ से वाकिफ़ हूँ,
तुम तक वो राज़ पहुँचाऊँ तो कैसे,
तुम्हारे अट्टारिये पर टकटकी लगाये,
चील और बाज़ से वाकिफ़ हूँ।।
ज़माने में आपकी "हैसियत" है....
और मैं,
अपनी "औकात"से वाकिफ़ हूँ,
इकतरफा जो आग लगै
आपै बुझ जावे...
किस्मत इतनी भी उदास नहीं मेरी,
जी हाँ,
आपके मन के भी "उन्माद" से वाकिफ हूँ।।
उस ज़माने से वाकिफ़ हूँ,
हर वक्त ,वज़ह-बेवजाह् कहना ज़रूरी नहीँ,
जो तुम्हारी आँखों को ,
क़िताब से भी बेहतर पढ़ ले,
उस "दीवाने" से वाकिफ़ हूँ।।
तुम्हारे चंचल मन को,
जिन उत्तर की तलाश है,
हर उस सवाल से वाकिफ़ हूँ,
जो तुम्हारे घातक नैन-बाण ,
मुझ तक आके थम गए ,
तो अंतर्मन के उबाल से वाकिफ़ हूँ।।
कोरे काग़ज़ पर कई हर्फ़ उकेरे,
रस-प्रेम से लबरेज़,
हर इक हर्फ़ में लुप्त ,उस राज़ से वाकिफ़ हूँ,
तुम तक वो राज़ पहुँचाऊँ तो कैसे,
तुम्हारे अट्टारिये पर टकटकी लगाये,
चील और बाज़ से वाकिफ़ हूँ।।
ज़माने में आपकी "हैसियत" है....
और मैं,
अपनी "औकात"से वाकिफ़ हूँ,
इकतरफा जो आग लगै
आपै बुझ जावे...
किस्मत इतनी भी उदास नहीं मेरी,
जी हाँ,
आपके मन के भी "उन्माद" से वाकिफ हूँ।।
Friday, 19 June 2015
क्या फर्क पड़ता है...
जो पन्नों पर तेरी ,मेरी कलम न चल पायी....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
जो घराने में तेरी,मेरी दाल न गल पायी ....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
तुम्हें मेरा सच पता है,मुझे तुम्हारा सच पता है.....
अब ज़माना भले ही झूठा समझे हमें...
क्या फर्क पड़ता है।।
जो दो अश्क मीठे ,नमकीन धारा बन गए,....
तो क्या फर्क पड़ता है।
जो याद में तेरे, ज़माने के नज़रों में आवारा बन गए...
तो क्या फर्क पड़ता है।
इस धरा पे काफ़िला अपना अब और नहीं, न ही सही.....
ऊपर ही कभी तेरा साथ मिले....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
जो सपनों ने मेरे ,आँखों में ही दम तोड़ दिया,.....
तो क्या फर्क पड़ता है।
तुमने भी जो मेरे सपनों को,गैर की आँखों से जोड़ लिया ,..
तो क्या फर्क पड़ता है।
पहले ज़माना आवारा कहता था, आदत सी थी,
अब तुमन भी बेचारा कह दिया .....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
एक मुद्दत के बाद,लोगो को पंख मिलते हैं,
मुझे डंक ही हैं मिले अगर...,...
तो क्या फर्क पड़ता है।
पहले नज़रें भी चेहेक्ति थीं,
आज ये होठ भी हैं सिले अगर...
तो क्या फर्क पड़ता है।
नज़रें बिछाये फिर भी राहों में तेरे खड़े रहेंगे,
खाक़ बन्ने के बाद भी जो तू आये अगर....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
तो क्या फर्क पड़ता है।।
जो घराने में तेरी,मेरी दाल न गल पायी ....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
तुम्हें मेरा सच पता है,मुझे तुम्हारा सच पता है.....
अब ज़माना भले ही झूठा समझे हमें...
क्या फर्क पड़ता है।।
जो दो अश्क मीठे ,नमकीन धारा बन गए,....
तो क्या फर्क पड़ता है।
जो याद में तेरे, ज़माने के नज़रों में आवारा बन गए...
तो क्या फर्क पड़ता है।
इस धरा पे काफ़िला अपना अब और नहीं, न ही सही.....
ऊपर ही कभी तेरा साथ मिले....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
जो सपनों ने मेरे ,आँखों में ही दम तोड़ दिया,.....
तो क्या फर्क पड़ता है।
तुमने भी जो मेरे सपनों को,गैर की आँखों से जोड़ लिया ,..
तो क्या फर्क पड़ता है।
पहले ज़माना आवारा कहता था, आदत सी थी,
अब तुमन भी बेचारा कह दिया .....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
एक मुद्दत के बाद,लोगो को पंख मिलते हैं,
मुझे डंक ही हैं मिले अगर...,...
तो क्या फर्क पड़ता है।
पहले नज़रें भी चेहेक्ति थीं,
आज ये होठ भी हैं सिले अगर...
तो क्या फर्क पड़ता है।
नज़रें बिछाये फिर भी राहों में तेरे खड़े रहेंगे,
खाक़ बन्ने के बाद भी जो तू आये अगर....
तो क्या फर्क पड़ता है।।
Sunday, 14 June 2015
R .I. P*******लोग क्या कहेंगे (L K K)*******
"शर्मा जी " और "कपूर साहब" ………
दो माननीय ,पूजनीय ,श्रद्धेय महोदय ……
जिनका सम्मान हर घर में होता है. ……
हर माँ- बाप ....
"शर्मा जी के बेटे" में अपने लाडले को खोजते हैं …
और घर के हर छोटे- बड़े फैसले …
"कपूर साहब" को ध्यान में रखकर ही होते हैं …
बात हो मेहेंगे मोबाइल खरीदने की ,
या फिर हो कॉलेज में admission …
"कपूर साहब " क्या सोचेंगे !!
इस पर जरूर होता है हर घर में discussion ……
पहले लोग कहते थे ,
मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा.....
मेरा बेटा इंजीनियर बनेगा …
पर आजकल कहते हैं ,
की मेरा बेटा "शर्मा जी के बेटे" जैसा बनेगा …
और तारीफ भी ऐसी , कि पता ही न चले ,
की तारीफ हो किसकी रही है…
अव्वल जो क्लास में आये बेटा :-
"वाह बेटा! तू तो बिलकुल शर्मा जी के बेटे पे गया है…"
"आगे चलकर तू भी उस जैसा बनेगा कहीं .... "
और नंबर जो कम आये तो :-
"नालायक !तू शर्मा जी के बेटे से कुछ सीखता क्यों नहीं !!"
अगर शर्मा जी का बेटा इंजीनियरिंग करे तो.……
*********centi dialouges ********
"मेरी तो सदा यही तम्माना थी ,
की इंजीनियर बने मेरा भी बेटा ".......
यार , कोई बेचारे बेटे से भी पूछ लो.…
उसे कोई कुछ कहने क्यों नहीं देता ??
और अगर भूले भटके , गलती से भी . …
जो बेटे ने आवाज़ उठाई....
बस , वहीँ से माहौल में आ जाती रुसवाई...
और अचानक लगने लगता ऐसा मानो ,
अभी -अभी हुई हो बेहेन की बिदाई...
पापा जी के आँखों में नमी ,
और कंठ में शब्दों की कमी...
उसके बाद आता है...*****THE WORLD FAMOUS "INDIAN" DIALOGUE"****
"बस अब यही सुन्ना बाकी रह गया था ,
बहुत बड़ा हो गया है रे तू!!
आस-पड़ोस में पता चलेगा ,
तो लोग क्या क्या पूछेंगे ,
और बाकी सब की छोड़ो …
अपने कपूर साहब ………… अपने कपूर साहब क्या सोचेंगे ??"
बेटे ने अगर कभी
luv marriage का रखा प्रस्ताव,,,
तो सीधा सवाल मम्मी जी के पास जाता है,,,
"अरे भाग्यवान !
अपने शर्मा जी के बेटे ने क्या की है, ?
luv या arrange??"
यदि उत्तर आया -"luv "
तब तो,
"जा बेटा , तेरी ज़िन्दगी है ,
खुल के जी,हम तो हैं ही तेरे साथ "……
मगर यदि उत्तर आया- "arrange "
तब ,
"नालायक !!
यही दिन दिखाना था तुझे ,
तू तो है खानदान पे दाग ……
तेरे इस चक्कर के किस्सो को ,
मैं किस -किस से छुपाऊँगा ,
और बाकि सब की छोङो ,
मैं "कपूर साहब "को क्या मुँह दिखाऊंगा ....
बेटा भी कभी सोचता होगा
कहीं न कहीं ,
यार , "कपूर साहब",मेरे दादा जी का ,
कोई उपनाम तो नहीं ,
पर इतनी जी हुज़ूरी तो वो
उनकी भी नहीं करते थे ……
और जहाँ तक डर की बात है -
अपने क्या , दूसरे के बाप
से भी नहीं डरते थे .... !!
MRS. ने जो कभी जीन्स पेहेन ली,
तो MR. भड़क के बोलेंगे ,
"लोग क्या कहेंगे "!!
जो बाल थोड़े छोटे कर लिए , तो
"लोग क्या कहेंगे "!!
बेटे ने जो tatoo बनवा ली , तो ……
"लोग क्या कहेंगे "!!
girl friend के साथ जो dp रख ली, तो ……
"लोग क्या कहेंगे "!!
सर से कभी आँचल उतरा , तो ....
"लोग क्या कहेंगे "
अगर कभी सुट्टा मारते पकडे गए , तो…
" लोग क्या कहेंगे "!!
अक्सर लोग FILMSTARS की नक़ल करते हैं ,
बाल से लेकर चाल तक,
गाल से लेकर ढाल तक ,
सुरमे से भी सजा लेते अपनी नैना ,
पर ये क्यों भूल जाते ,
की,
" कुछ तो लोग कहेंगे,लोगो का काम हैं कहना ".......
LKK(लोग क्या कहेंगे ") को समझना आसान नही....
इसे समझने में काफी लोचा है ,
लोग बच्चों के आँखों से आँसू पोछते हैं ,
इसने आँखों से सपनो को पोछा है....
इस "LKK" ने,
जितनी जिंदगानियों को तबाह किया है,
उसके मुकाबले
" कसाब " का कारनामा तो मामूली गिना जायेगा,
यारों , उसे तो सजा मिल गयी.…
इस LKK का नंबर कब आएगा ??
इस LKK का नंबर कब आएगा ??
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