Saturday, 27 June 2015

मैं वाकिफ़ हूँ....

आँखों में तुम्हारे ,ज़माना दिखता है,
उस ज़माने से वाकिफ़ हूँ,
हर वक्त ,वज़ह-बेवजाह् कहना ज़रूरी नहीँ,
जो तुम्हारी आँखों को ,
क़िताब से भी बेहतर पढ़ ले,
उस "दीवाने" से वाकिफ़ हूँ।।

तुम्हारे चंचल मन को,
जिन उत्तर की तलाश है,
हर उस सवाल से वाकिफ़ हूँ,
जो तुम्हारे घातक नैन-बाण ,
मुझ तक आके थम गए ,
तो अंतर्मन के उबाल से वाकिफ़ हूँ।।

कोरे काग़ज़ पर कई हर्फ़ उकेरे,
रस-प्रेम से लबरेज़,
हर इक हर्फ़ में लुप्त ,उस राज़ से वाकिफ़ हूँ,
तुम तक वो राज़ पहुँचाऊँ तो कैसे,
तुम्हारे अट्टारिये पर टकटकी लगाये,
चील और बाज़ से वाकिफ़ हूँ।।

ज़माने में आपकी "हैसियत" है....
और मैं,
अपनी "औकात"से वाकिफ़ हूँ,
इकतरफा जो आग लगै
आपै बुझ जावे...
किस्मत इतनी भी उदास नहीं मेरी,
जी हाँ,
आपके मन के भी "उन्माद" से वाकिफ हूँ।। 

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