तमन्ना मेरी इतनी सी बस...
तुम आओ।
हो चांदनी रात,
और तुम मेरे साथ..
बाहों में बाहें ,
हाथों में हाथ...
सपने ऐसे देखे हज़ार...
पर क्या सपना ही है, हमारा ये प्यार।।।
तमन्ना मेरी इतनी सी बस,
के तुम आओ।
बारिश की बूंदो से ...
धरती को फिर प्रेम हुआ ...
पर भीग कर भी मैं अछूता...
या खुदा...
अब तो दे कोई दुआ....
दरमियाँ हमारे फासला है...
पता है...
अब तक मैं चुप सा था...
पर आज जंजीरे तोड़ने को जी चाहता है...
ये मन मेरा पिंजरे में कैद...
आज खुले आसमान में उड़ने को जी चाहता है...
'चाहत'..'तमन्ना'...क्या ये सिर्फ शब्द हैं...
इन शब्दों की प्रतिमा ..तुझमे ढूंढने को जी चाहता है...
तेरे चेहरे की तारीफ कई बार की होगी...
पर एक बार..उस चेहरे में अपनी कमी खोजना चाहता हूँ...
बस एक बार ...
तुमसे मिलना चाहता हूँ।
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