टूटेगा टूटेगा ....
इक दिन ये भी टूटेगा...
माटी का नहीं भले ही हो
माटी में इक दिन मिल जायेगा...
सूरज जो कभी निकला ही न था..
अब सपनो में भी नहीं आएगा।।
टूटेगा टूटेगा ..
इक दिन ये भी टूटेगा।।
देख- दिखावा है दस्तूर- ऐ- दुनिया..
ये पर्दा बेहतरीन सा..
हर बद को पनाह देकर ये
बत्तर को जनमाता...
रीढ़ भले झुक जाये
फिर भी..
आजु का माल बाजू से लूटेगा...
टूटेगा टूटेगा...
इक दिन ये भ्रम भी टूटेगा।
चंद पलकों पे लाखों सपने...
पलकें भी बेजान सी...
इंसान जो इतना बोझ सहे
उसे गधे की संज्ञा मिलती है,
पर मूक ये पलकें,हिलती हैं तो भी डर डर के ही हिलती हैं...
कहीँ सपना कोई छूट न जाये..
गिर के कहीँ वो टूट न जाये...
मालिक ने तो
बोझ अपना इन पलकों पर धर दिया...
न कुछ सोचा न जाना...
सपनो की कतार में एक और सपना गढ़ दिया..
आस पास से पाकर थपकी
तू सपनो का महल बनाने में जरूर जुटेगा...
इंतज़ार करो...
टूटेगा टूटेगा...
वक्त के पत्थर से..
तेरा वो शीशमहल भी टूटेगा।।
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