हाँ मरहम लगा लिया है,
अब लगता है दर्द कम हो जायेगा।
हाँ आँखें फेर ली हैं,
अब लगता है दर्द कम हो जायेगा।
हाँ उन पैमानों की छल छल से
खुद को सींच लिया है,
अब लगता है दर्द कम हो जायेगा।
हाँ उस पहली होली के
रंगीले कपडों को
मैंने दान दिया
हल्का सा पुण्य चुरा लिया,
हाँ बीती दीपावली में
वो साथ जलाये हुए दीपक को
पीछे नाले में ही प्रवाहित किया,
हाँ तेरी पढ़ी हुई
हर कविता के पन्नों को
मैंने खुद के हाथों से फाड़ दिया,
हाँ तेरी हर तस्वीर
मैंने अग्नि देव को उपहार दिया,
हाँ ये सच है
कि लिखना बोलना आसान है
करना मुश्किल
पर अब जो हो देखा जायेगा,
अच्छी बात तो ये है कि
अब लगता है दर्द कम हो जायेगा।
हाँ ये डंक विषैला
वक्त का रूप लिए
मुझे भेद रहा है,
पर मेरी ओर से आँखों को
बेपरवाही का संदेश दिया जायेगा,
तब शायद दर्द कम हो जायेगा।।
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