अम्मा देखो, गज़ब हो गया,
अट्टरिये पर कल जो आया था,
वो चाँद जाने कहाँ खो गया।
सूरज तो हर दिन आता है ,गुस्से से जलता जाता है,
थक जाता फिर , दास निशा का बन जाता है
आसमान भी निशा से डरकर
काले चादर के पीछे छिप जाता है
मगर आज ये चादर है क्यों बेदाग़ इतना ?
मानो जैसे नर्तकी के कदम थिरके , पर घुंघरुओं पर हो सन्नाटा छाया,
आज चाँद नहीं आया।।
चुपके चुपके आता था,
पिटारा अपना फैलाता था,
जादुई पिटारे से, तारों में प्राण भर जाता था,
हस्ते मुस्काते तारे कितने,
यह देख वो भी खुश हो जाता था
पर देख माँ,
आज ये तारे कैसे आँखें मीचें बैठे हैं,
क्यों आज उलटी पड़ी है सृष्टि की काया,
आज चाँद नहीं आया।।
कल कुछ बच्चे उसे चिढ़ा रहे थे,
उसके चेहरे के दागों पर नमक उड़ा रहे थे,
लगता है उन लोगों ने मेरे मित्र को है ठेस पहुँचाया,
इसी वजह से शायद,
आज चाँद नहीं आया।।
पुती पड़ी है कालिख देखो,
अब हर चेहरे, हर दीवार पर,
सज धज कर जो बाहर निकली नायिका,
कालिख उसके भी श्रृंगार पर,
एक अंधे के जीवन का तम
देखो ,आज सारे संसार पर
आज सारे संसार पर।
अँधेरे में है आज , वो सारे कस्मे, वो वायदे,
अँधेरे में है आज , सारे कानून - कायदे,
अँधेरे में है आज, मोहोब्बत हमारी,
अँधेरे में है आज, इबादत तुम्हारी,
और अँधेरे में ही रह गयी , शहादत हमारी।।
शोख मनाता फिरता होगा कहीं,
के मन के तम को वो हर न पाया,
इसिलए
आज चाँद नहीं आया।।
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