Friday, 24 June 2016

किसी गुमशुदा की खोज में....

थक हारे मांदे , भर दिन , सूरज के छर्रों को झेला,
बहाऊँ क्या मैं , क्या मैं पोछूँ,
पसीना, आंसू..... कीमत एक ही, एक ही खेला,
बड़ी देर कर दी मेहरबान ,
पर आ ही गयी अब वो बेला
नीचे खाट, ऊपर बिछौना , ऊपर हम, और हमरे ऊपर
पलके झपकाते तारों का मेला

पर हादसा - सा कुछ हुआ,
आलिंगन फैलाये खड़ी थी
वो नींद , दे गयी बद्दुआ,
खाट छोड़ा उठ खड़ा मैं जोश में,
किसी गुमशुदा की खोज में।।

किस्सा न याद आये पुराना,
कुछ संजोई, कुछ पिरोई, अब धुंधली
यादों पर से पड़ेगा ये गर्द हटाना,
तीली बारी,मोम जलाया,
इधर मैं जलूं ,उधर वो जले,
साथी मैने उस में पाया,
पर वो अक्ल का मालिक
पिघल कर शांत कर लेता जलन अपने होश में,
हर ले मेरे भी जलन को जो,
हूँ पड़ा उस
गुमशुदा की खोज में।।

हर कड़ी से कड़ी जोड़ते हैं,
वो कहने वाले न कोई  मौका छोड़ते हैं,
छूट जाते खुद ही वो पीछे तो अच्छा होता,
दाग चेहरे के तो गिना जाता कोई अपना भी ,
मगर होता तो सच्चा होता।
झेला थपेड़े खेत में,
कभी बैलों  के पीछे भागता
पैर छिल गए  चलते चलते रेत में,
हूँ खोजता है मैं नर्म स्पर्श
आज अपने चोट और खरोच में,
हूँ मैं किसी गुमशुदा की खोज में।।
किसी गुमशुदा की खोज में।।

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