Saturday, 30 July 2016

Placement का season आया है...

भागो सरपट,
दौड़ो झट झट,
काजू बादाम चट कर जाओ,
जाओ हर एक सवाल रट रट,
Placement का season आया भइया,
Apti, english घोल कर पी जाओ घट घट।
सूट बूट सब पॉलिश कर लो,
नया रुमाल जेब में भर लो,
टॉम क्रूस नहीं, थोडा बालों को तुम सेहवाग सा कर लो,
अरे अरे, resume देख संभल के भर लो,
चाल ढाल थोड़ी सी बदल लो,
Gk भी थोडा तुम पढ़ लो,
गर्ल फ्रेंड से थोडा झगड़ लो,
महीने भर उसे offline कर लो,
Janu ,baby ,shona छोड़ो,
Java, c, c++ कर लो,
तोड़ के रिश्ता rum , बोतल से,
Subject knowledge थोडा improve कर लो,
ये मौसम है placement ka,
तुम भी अपनी झोली भर लो।

Friday, 29 July 2016

आज चाँद पर पहुँचा कोई...


आज चाँद पर पहुँचा कोई, दुनिया में उसका नाम हो गया,
इधर दाम बढे हैं भाजी के, आज रोटी गुड़ से ही अपना काम हो गया।

मच्छड़ों का जुलूस निकला है, odomos लगाये फिरता हर कोई,
हमने बस मचरदानी लगायी , और मच्छड़ों का काम तमाम हो गया।

फेयरनेस क्रीम आजकल, अलग मर्दों की औरतों की अलग आती है,
हमने साबुन ही ऐसा मला की आदमी आम से खास हो गया।

बच्चा क्या जाने कि बचपना क्या होता है,
जब लालटेन जला के अपने बच्चे को क ख ग सिखाया , तब उसे बचपन का एहसास हो गया ।

छत पर आये तारों की गणना करनी थी मुझे ,
इसी शौक के आगे तो ac ,पंखा सब बेकाम हो गया।

ऐ "आम" तू बस फलों का ही राजा है,
एक दिन रूह अपनी आदमियों में फूँक दी जो,
देख तेरे भी गले में लगाम हो गया।

अब तक तो बस लत शराब की, हमें खराब लगती थी,
लो आज से दाल खाना भी हराम हो गया।

दबाती है सल्तनत हमें, हम भी जी हुज़ूरी से लाचार हैं,
कहीं कुछ ऐसा न कर जाये "कुमार" कि,
अखबारें चीख उठे कि आज एक आम आदमी शैतान हो गया।।

Monday, 25 July 2016

उनकी हालत पर बड़ा तरस आया...

अरे सुनो भाई, जल्दी आओ,
काम सारे छोड़के आओ,
मुन्नी, चिंटु, तुम भी आओ
मम्मी पापा को साथ ले आओ,
टन टन वाली घंटी नहीं,
अरे कोई वो लाल वाला साईरन बजाओ,
घर घर हमरी आवाज़ पहुचाओ,
इकबाल हो, या हो फैज़ल, या मियां इमाम,
भगत हो, या हीरालाल, या चौधरी घनश्याम,
सिख हो ईसाई, हो सनातन या इस्लाम,
चलो जल्दी, पहले इससे की हो जाये काम तमाम,
देखो अपनी पड़ोसी की हालात क्या हो गयी भगवान,
असाध्य हो गया रोग, जो था मर्ज़ एक आम
न दवा काम करती , अब तो बस दुआ का ही नाम।।

शरीर से तो पहले ही लाचार थे बेचारे,
चलते भी थे ,तो मेड इन चाइना वाली छड़ी के सहारे,
मानसिक संतुलन भी आज उनका डगमगाया हुआ पाया,
जब उन्होंने कश्मीर को अपने परिवार में गिनाया,
कश्मीर हमारा है , प्राणों से भी प्यारा है,
लगातार ऐसा नारा लगाया,
कसम खुदा की, उनकी हालत पर बड़ा तरस आया।।

बेटे भी उनके कद काठी में अच्छे , पर रास्ते पर गलत चल दिए हैं,
कहाँ बूढ़े को सहारा देते, बेड़ियों से कदम बाँध, गम दिए हैं,
खुद ही खुद में लड़ते रहते,  धर्म जात न कोई भिन्न,
कलम जिन हाथों में होना था, वहाँ मिलते हैं, बारूद के चिह्न,
आज बात बात पे लड़ लड़ मरते हैं,
वजह लश्कर के नाम बाप का खराब करते हैं,
देखो बच्चों , रो रो के आँखे मेरी सूझ गयी,
हमारे पड़ोस की रौशनी ही लगता है बुझ गयी,
हाय कश्मीर, मेरा कश्मीर जो नारा लगाया,
कसम खुदा की, उनकी हालत पर बड़ा तरस आया।।

कई दफा हमने भी हाथ अमन का बढ़ाया था,
धर्म पडोसी का बखूबी निभाया था,
कई दफा अपने घर भी बुलाया था,
संग अपनों के घुलाया मिलाया था,
होते शक्कर की ढेली या बोरी नमक की तो बात और थी,
पर कहाँ  कोई संगो ख़िश्त कभी पिघलता है,
आज उनके ज़ख्म पर देखो ये बादल भी बरस आया,
उनकी हालत पर आज बड़ा तरस आया।।

Wednesday, 13 July 2016

मुझे सोने दे....

वो आई थी, भर हुस्न का प्याला लायी थी,
वो आई थी, खोलने मेरे किस्मत का ताला आई थी,
मैंने कहा , मुझे सोने दे।

पापड़ मैंने बेले कितने तेरे पीछे, तुमने ख़रीदे होते काश,
आज भी छत पे सूख रहे वे,  हैं जैसे ज़िंदा लाश,
जवानी की मेहनत तो दगा दे गयी,
अब नींद मिली है किस्मत से,
"क्या होता जो तुम होती" , ऐसे ही सपने में खोने दे,
मुझे सोने दे।

दो रोज़ पहले कुछ लोग आये थे,
सूरत भले मानुस की, सीरत चोरों की लाये थे,
निकाल चाकू चीख उठे, बोले, "हिलोगे तो फिर कभी हिल न पाओगे" ,
मैं बोला, "भई ले जा जो लेना है, पर चीख पुकार न होने दे" ,
मुझे सोने दे।

देश में बड़ी लूट- पिटाई आज है,
सरकार के नाम पर, मिली भगतों का राज है,
आज ये आउट तो कल उसके सर ताज है,
जो लड़कियां अपनी मर्ज़ी की पहने, तो बेशर्म,
और मर्द निहारें, बगल की बहु - बेटी,
उन्हें नहीं कोई लाज है,
भाई बंद करो ये समाचार, ये तुच्छ विचार,
किसान गरीब मरता है,  रोता है उसका बच्चा तो उसे भूखा रोने दे,
मुझे सोने दे।

कोई विदेश दौरा करता ,
कोई घर - घर दौड़ा करता,
कोई विलायती पानी पीता,
कोई झोपड़ी - झुग्गी में चाय,
लोगों से घर वापसी कराते,
है पर इनका एक ही समुदाय,
खैर , जो होता है होने दे,
मुझे सोने दे।

जो शांत है, असमर्थ नहीं,
सेहनशीलता कभी भी व्यर्थ नहीं,
भड़क उठी जन- ज्वाला जिस दिन,
खेल खूनी होगा जरूर,
क्योंकि जोकों पर नमक डालना ,कोई अनर्थ नहीं,
एक नयी क्रांति के लिए तैयार मुझे होने दे,
नए प्रकाश में जगना है कल,
इसलिए मुझे सोने दे।।

Tuesday, 12 July 2016

हम तो विफल रहे, पर तुम्हे सफल बनना होगा...

साँचा हमारा होगा,
तुम्हे उस साँचे में ढलना होगा,
कदम तुम्हारे होंगे लेकिन,
हमारे बताये राह पर चलना होगा,
हम तो विफल रहे, पर सफल तुम्हे बनना होगा।

हमने क्या किया, क्या करने से चूक गए,
वक्त और उम्र कहाँ तुम्हारी, कि जान सको,
बुढ़ापे का सम्बल तुम्हे हमारा बनना होगा,
हम तो विफल रहे , पर सफल तुम्हे बनना होगा।

जो चाहिए मिलेगा,
साल -दो साल चेहरे पर तुम्हारे अगर हँसी की रेखा न हो, चलेगा,
जो न कर सके मेरे परिचित के सगे साथी भी,
वैसा कुछ तुम्हे करना होगा,
हम तो विफल रहे, पर सफल तुम्हे बनना होगा।

नाक मेरी मुझे प्यारी सबसे,
बच्चे मेरे कुछ ऐसा कर
नज़र मेरी कभी झुक न पाये,
ताव रहे हर दम मूछों पर,
रीढ़ दम्भ में डूबी हो,
और नीचे न हो कभी ये सर,
ढाई आखर से बचना है , तुझे अपने क्षेत्र में पंडित बनना होगा,
हम तो विफल रह गए, पर तुम्हे सफल बनना होगा।

कभी दुःख कोई , हो तकलीफ कोई बेटा,
तो ज़िंदा तुम्हारा बाप है,
पर ये भी याद रखना ज़रा कि
90 से कम तो पाप है,
और पाप किया अगर जो तो भागीदार हम नहीं,
खुद तुम्हे अकेले अंगारों पर चलना होगा,
हम तो विफल रहे, मगर तुम्हे सफल बनना होगा।।

Tuesday, 5 July 2016

आपकी उम्मीद में उनकी उम्मीद का संघार न होता.....

जो न आना था अबकी बार इस पार, तो चिट्ठी -पत्री -तार कर देते,
आपकी उम्मीद में  उनकी उम्मीदों का संघार न होता।।

भला तो यूँ होता की बद्दुआ ही असर किसी की हम पर कर जाती,
कमसकम मेरी वजह से उनका जीवन तो उजाड़ न होता।।

धक्के खा चुके हैं पहले भी, हम तो अब भी संभल जाएं मगर,
किसी अपने के चश्मे - तर का एहसास दिलाती ये बूंदे, काश ! ये महीना आषाढ़ न होता।।

नूर में आपके कुछ यूँ खोए, की चाँद पूनम का दिखा ही नहीं,
कोई थमा जाता अंधे को लाठी अगर, तो शायद उनके आज उनके कलेजे पर दुःखों का पहाड़ न होता।।

मज़े मज़े में जिंदगी मज़ा ले गयी,
उनकी ज़िन्दगी बच सकती थी फिर  भी , गर पहले जानते की ऐसी गलतियों का सुधार  न होता।।

Saturday, 2 July 2016

दिल को समझाए कौन...

कहे सुने की बात है,
वो कमल सी नयनों वाली,
पर बिन देखे, माने कौन?
पैमाने का छल छल अब नीरस,
रस तो उनकी आँखों में ,
होते रसिक तो बात और थी,
पर बिन पिए रस की मर्यादा पहचाने कौन?
रह जाते अभागे, तो अच्छा होता,
क्यों दर्शन उनकेे हो गए,
अब बार बार गुब्बार उठता है,
अब निश्छल मन को बहलाये कौन?

यूँ तो नज़रें गली-मोहल्ले की,
आपकी राह तकती हैं
पर आपने हमारे बगल से गुज़रना चाहा,
अब अपनी किस्मत को अपना माने कौन?
मान ,प्रतिष्ठा , रकमें, शोहरतें,
ये तो लकीरों में गुदी होती हैं,
मगर जो कभी दिल पर, नई एक लकीर बने
फिर दिल -ऐ- नादान को फुसलाये कौन?
रोमियो, राँझा, मजनू, होंगे उस्ताद बड़े मगर,
बौने उनके सामने हम भी नहीं,
अब खुद से खुद की तारीफ सुनाये कौन?

कसमें, वादे ,रस्मों - रिवाज़,
न रखते किसी की भी हैसियत ही हम,
निभ गयी तो मालिक अल्लाह, जो न निभ सकी तो,
फिर अपना चेहरा फिरे छिपाये कौन?
हँस के जो दिल बहलाया आपने,
बड़प्पन समझूँ या बचपना आपका,
दिल्लगी तो सभी करते यहां अक्सर,
पर दिल -लगाना आखिर सिखाये कौन?
अब लगा अगर ये दिल यहाँ,
तो जले होंगे कुछ दिल वहाँ,
अपनी जो झोपड़ भी बसे तो
बाकियों को अपने मकान में भी चैन कहाँ,
दिल तो बहल ही जायेगा आज नहीं तो कल,
पर पड़ोसियों से दुशमनी निभाए कौन??