जो न आना था अबकी बार इस पार, तो चिट्ठी -पत्री -तार कर देते,
आपकी उम्मीद में उनकी उम्मीदों का संघार न होता।।
भला तो यूँ होता की बद्दुआ ही असर किसी की हम पर कर जाती,
कमसकम मेरी वजह से उनका जीवन तो उजाड़ न होता।।
धक्के खा चुके हैं पहले भी, हम तो अब भी संभल जाएं मगर,
किसी अपने के चश्मे - तर का एहसास दिलाती ये बूंदे, काश ! ये महीना आषाढ़ न होता।।
नूर में आपके कुछ यूँ खोए, की चाँद पूनम का दिखा ही नहीं,
कोई थमा जाता अंधे को लाठी अगर, तो शायद उनके आज उनके कलेजे पर दुःखों का पहाड़ न होता।।
मज़े मज़े में जिंदगी मज़ा ले गयी,
उनकी ज़िन्दगी बच सकती थी फिर भी , गर पहले जानते की ऐसी गलतियों का सुधार न होता।।
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