अरे सुनो भाई, जल्दी आओ,
काम सारे छोड़के आओ,
मुन्नी, चिंटु, तुम भी आओ
मम्मी पापा को साथ ले आओ,
टन टन वाली घंटी नहीं,
अरे कोई वो लाल वाला साईरन बजाओ,
घर घर हमरी आवाज़ पहुचाओ,
इकबाल हो, या हो फैज़ल, या मियां इमाम,
भगत हो, या हीरालाल, या चौधरी घनश्याम,
सिख हो ईसाई, हो सनातन या इस्लाम,
चलो जल्दी, पहले इससे की हो जाये काम तमाम,
देखो अपनी पड़ोसी की हालात क्या हो गयी भगवान,
असाध्य हो गया रोग, जो था मर्ज़ एक आम
न दवा काम करती , अब तो बस दुआ का ही नाम।।
शरीर से तो पहले ही लाचार थे बेचारे,
चलते भी थे ,तो मेड इन चाइना वाली छड़ी के सहारे,
मानसिक संतुलन भी आज उनका डगमगाया हुआ पाया,
जब उन्होंने कश्मीर को अपने परिवार में गिनाया,
कश्मीर हमारा है , प्राणों से भी प्यारा है,
लगातार ऐसा नारा लगाया,
कसम खुदा की, उनकी हालत पर बड़ा तरस आया।।
बेटे भी उनके कद काठी में अच्छे , पर रास्ते पर गलत चल दिए हैं,
कहाँ बूढ़े को सहारा देते, बेड़ियों से कदम बाँध, गम दिए हैं,
खुद ही खुद में लड़ते रहते, धर्म जात न कोई भिन्न,
कलम जिन हाथों में होना था, वहाँ मिलते हैं, बारूद के चिह्न,
आज बात बात पे लड़ लड़ मरते हैं,
वजह लश्कर के नाम बाप का खराब करते हैं,
देखो बच्चों , रो रो के आँखे मेरी सूझ गयी,
हमारे पड़ोस की रौशनी ही लगता है बुझ गयी,
हाय कश्मीर, मेरा कश्मीर जो नारा लगाया,
कसम खुदा की, उनकी हालत पर बड़ा तरस आया।।
कई दफा हमने भी हाथ अमन का बढ़ाया था,
धर्म पडोसी का बखूबी निभाया था,
कई दफा अपने घर भी बुलाया था,
संग अपनों के घुलाया मिलाया था,
होते शक्कर की ढेली या बोरी नमक की तो बात और थी,
पर कहाँ कोई संगो ख़िश्त कभी पिघलता है,
आज उनके ज़ख्म पर देखो ये बादल भी बरस आया,
उनकी हालत पर आज बड़ा तरस आया।।
No comments:
Post a Comment