Friday, 18 November 2016

Line में लगने चलना है...

चल भैया , सुबह हो गयी,
Line में लगने चलना है,
कल तो अपना no. आया नहीं,
आज फिर शुरुआत करना है,
राशन की कतार में तो कई बार हम लग चुके,
आज अपनी पगार के लिए भी कतार में लगना है,
"काले" , "गोरे" की लड़ाई में "सांवलो" का रंग ढल रहा है,
क्या system आ गया है,
पूरा देश आज line में चल रहा है,
हर टेढ़े को सीधा किया है,
हर सीधे को कड़क,
अब तो ATM ही मंदिर अपना,
घर अपनी अब सड़क,
मौके और भीड़ का फायदा भी उठाया जा रहा है,
बगल में कचौरी और जलेबियां भी छनवाया जा रहा है,
पर वो कचौरी वाला भी हमारे हालात जानता है,
इसलिए वो भी cash on delivery नहीं, payment in advance मांगता है,
नयी नयी job लगी है,
लेट जाना बॉस को नागवारा है,
और मैं यहाँ line में लग कर अपना "country" धर्म निभा रहा हूँ,
पर अगर "U R FIRED" कह कर जो बॉस ने अपना "corporate" धर्म निभा दिया,
तो मेरा तो धर्म पर से विश्वास ही उठ जायेगा,
हर तरह की line है यहाँ,
छोटी line
लम्बी line
बैंक की line
Atm की line
सुबह की line
दफ्तर से छुट्टी लेकर लगने वाली line
बीवी के छुपाये नोटों को old to gold करने की line,
बुज़ुर्गों के लिए खास line
अब बताइये ...खाँसने वाली उम्र में खास line...
बातें बहुत हो गयी यारों,
अब काम पर चलना है,
भीड़ बढे इससे पहले
Line में लगने चलना है।।

Wednesday, 2 November 2016

चलो सोने चलते हैं...

चलो सोने चलते हैं,
एक दुसरे में खुद को खोने चलते हैं,
सर अपना मैं तुम्हारे गोद में रख दूँ,
और तुम मेरा केश संवारो,
मैं आँखें बंद करूँ,
और तुम मुझे निहारो,
मैं तुम्हारे दिन भर के काम के थकान को छुपाती तुम्हारे आँखों के असमर्थ प्रयास को पढ़ लूँ,
और तुम न कुछ कहो,
बस एक मुस्कान न्योछावर कर दो,
आंसुओं के अम्बार को पनाह देती ये मुस्कान,
हो मानो खोखले महल का पहरेदार,
मैं बातें करूँ तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से,
तुम रुष्ट होकर, ज़ुल्फ़ संवारो,
गुस्सा ये तुम्हारा, अल्हड़पन ये,
यही तो साँसों को मेरे गति दे रहा है,
तुम चेहरा फेर लो,
मैं इंतज़ार करूँ,
मेरी आँखों को तुम कनखियों से देखो,
मैं आहिस्ता शर्म को दरकिनार करूँ,
और नैन जो चार हुए अब,
सैलाब आंसुओं का आना ही था,
मौत से भी ज़्यादा सच्चाई है इनमे,
और ज़िन्दगी से ज़रा कम इलज़ाम,
तुम न पोछो इन्हें रहने दो,
तुम्हारी आँखों से बह रहा है जो अमृत,
मेरी साँसों में भी बहने दो,
ये लो मेरा हाथ थामो,
रात से बातें हम करें कुछ,
नींद आये, इससे पहले,
धड़कनों को कम करें कुछ,
अनकहे लफ़्ज़ों को
और बातें करने दो कुछ,
ये दिया क्यों जल रहा है,
लौ को धीमा कर
रात को तुम बढ़ने दो कुछ।।

Tuesday, 1 November 2016

मैं जब भी ....

मैं जब भी शांत हो जाता हूँ,
काव्य सम्राट हो जाता हूँ,
दुनिया मेरी कलम कि स्याही,
और मैं कलमकार हो जाता हूँ,
कम पड़ जाते कोरे कागज़,
लिखने में इतना मशगूल हो जाता हूँ,
कभी दीवार, कभी मेज़, कभी बिस्तर,
कभी ज़मीन पर ही लिखते लिखते सो जाता हूँ,
मैं जब भी शांत हो जाता हूँ,
काव्य सम्राट हो जाता हूँ।

कवि सा जीवन जीता हूँ,
तो यथार्थ सामने आता है,
लिखना मुश्किल नहीं,
वाह वाह तो उसकी होती है,
जिसको सुनाने आता है।
घड़ी यहाँ है सबके पास, पर वक्त कहाँ है,
कविता बैठ कर पढ़ने का बहाना जबर्दस्त कहाँ है ?
यूँ चलते चलते सुना देता ही जुमले कभी दो चार,
कभी "वाह" नसीब होती, कभी "क्यों लिखते हो यार"?
सुनकर शब्द अनमोल ऐसे,
मैं खुद ही खुद में खो जाता हूँ,
जो खुद में मैं यूँ खो जाता हूँ,
शांत बिलकुल हो जाता हूँ,
और मैं जब भी शांत हो जाता हूँ,
फिर काव्य सम्राट हो जाता हूँ।

हँसी...

जो आज तारीफों से नवाजा गया,
तो खिलखिला उठी ये हँसी
जो अबतक गहरी नींद में थी,

जाने ये हँसी कहाँ थी,
जब सगे साथी अपने विजयी हुए थे।

जो आज इस अंधी दौड़ में,
अपनों से आगे निकल गए,
तो जी उठी ये हँसी,

इस बात से बेख़ौफ़
कि हँसी का तेज बढ़ा है, आयु नहीं
जाने ये हँसी कहाँ थी,
जब कभी वो भी आगे बढे थे।

जो आज कुछ ऐसा पा लिया,
जो बाकियों का ख्वाब था,
तो हँसी की छाती चौड़ी हो गयी,

जाने कहाँ थी ये हँसी,
जब उनके ख्वाबों को भी पर लगे थे।

ये थी कहाँ, कहीं तो होगी ये हँसी,
दूसरों के जीत से जी चुराती,
और अपनी सफलता पर इतराती ये हँसी,
खुद का समाचार शुभ हो तो झट से चेहरे पर छा जाती ,
दूसरे के शुभ समाचार से, दिमाग पर चढ़ जाती है ये हँसी,
खुद की हार अस्वीकार इसे क्यों,
क्यों नहीं शीश झुकाये आती ये हँसी?
कभी तो दूसरों की हार पर भी निकल जाती ,
इंसानियत का पाठ , क्यों न जाने ये हँसी?
इतनी जलती क्यों है
इसे जलाता कौन है,
अपना पराया इसे सिखाता कौन है,
कौन है इसका मालिक ,
इसे चलाता कौन है?

बचपन की एक पहचान है हँसी,
जो जवानी की कश्ती पर
कभी डोलते, कभी गोते खाते,
बुढ़ापे की नर्म छाँव तक पहुँचती है,
ये तो पाक है, मासूम है,
लहु की ठंढक, सुकून भरी साँसों का प्रतीक,
ये नहीं जल सकती ,
ये नहीं किसी के कहने पर ढल सकती
ये तो इंसान है जो तोड़ता मरोड़ता है,
बचपन के इस पहचान को भी,
स्वार्थ के तराजू पर  तोलता है,
ये न कहीं जाती है, न आती है,
हँसी एक खिलखिलाता फूल है,
जो बिन पूछे, बिन बोले बस खिल जाता है,
माली कोई भी हो उसका मगर,
वो फूल सभी को देख मुस्काता है,
ये अपना दर्शक नहीं चुनता,
वसुधैव कुटुम्बकम का जीता जागता प्रमाण है ये,
इससे न खेल मनुष्य,
कुदरत का एक बहुमूल्य वरदान है ये।।

Saturday, 29 October 2016

I love u oye samaaj...

टेंशन न कोई तुझको, तू तो देता है...
बच्चे, बूढ़े, जवान , छिछोरे , सबकी लेता है...
तुझसे ही तो है अपनी आबादी,
तू है तो है घर घर में बर्बादी...
तेरी ही निगरानी में तो होते है सब काज,
I love u oye samaaj ..
I love u oye samaaj...

तुझसे ही तो है लड़कियां अंदर घर के...
चले भी कदम आगे , न उतरे आँचल सर से..
नाक पर तो तेरी यारा पकड़ निराली...
मनमानी जो करे , कटी नाक है, पड़ी है गाली..
रंक यहाँ सब तेरे आगे , तेरा ही है राज,
I love u oye samaaj ...
I love u oye samaaj...

तू ही हिम्मत वाला, तू ही रखवाला,
तेरे डर से काँपे , प्रेम करने वाला,
छी छी , थू थू करना तेरा अधिकार है,
जो न चले तेरे नियम से, धिक्कार है,
माँ बाप तेरा कोई होता तो, उनको होता नाज़,
I love u oye samaaj ...
I love u oye samaaj....

अलग कोई कुछ काम करे तो, दिलाओ उसको याद....
बाबु तुमसे न होगा, है यही तेरी औकात...
जब जब कोई आगे बढे , करे तरक्की दो चार,
पकड़ के लाओ , पंजर ढीले कर दो उसके यार...
जी में आता वो करते हो, कभी न गिरती गाझ...
इसीलिए तो...
I love u oye samaaj ...
I love u oye samaaj....

Saturday, 15 October 2016

कोई तो है....

इन रगों में लहु,
हर दम में, साँस का कतरा भरने वाला,
कोई तो है।

बारिश में भीगने की वज़ह,
बेवज़ह होठों पर हँसी बिखेरने वाला,
कोई तो है।

कवि के कलम में मिठास,
सावन के अंधे को, हरियाली का आभास कराने वाला,
कोई तो है।

नज़रें ऊपर उठती हैं, तो ज़ुबां पर चुप्पी क्यों,
ज़ुबां का ताला खुले अगर जो,
फिर ये नज़रें झुकती क्यों,
फ़ासले हों तो मन उदास क्यों,
पर जब हो दीदार , तो बेसब्री का लिबास क्यों
सपना ही अगर है ये,
तो सपने में ही चेहरे पर मीठी एक रेखा खींचने वाला,
कोई तो है।

कोई तो है , कि ज़िन्दगी दो पल से ज़्यादा लगती है,
आग का दरिया नहीं, एक ख़ूबसूरत सा वादा लगती है,
निभाना कोई मुश्किल नहीं, आसान है,
कोई तो है जिसके लिए मेरे हाथों में पूरा आसमान है।

तुम हो हक़ीक़त या नहीं,
ख़बर नहीं हमें,
रखना भी चाहे कौन,
जो मिल गयी , मर जाऊँ ख़ुशी से,
न मिली जो , फिर आँखों से लहु बहाए कौन।
जो हो, जहाँ हो,
दुआ सलामती की पहुँचती रहेगी,
किसी की दिलग्गी को भुलाया है तुमने,
अब तुम्हे दिल-ऐ-अज़ीज़ में पनाह से बचाये कौन ।

इन रगों में लहु,
हर दम में साँस का कतरा भरने वाला,
कोई तो है।।

Sunday, 14 August 2016

तुम न होते , कुछ न होता....

तुम न होते , कुछ न होता,
ज़ंजीरें होतीं , दर्द होता,
चीखें होतीं, जखम होता,
होती ख्वाहिशें तब भी,
मगर
पंख ख्वाहिशों का मेरे ही ज़हन में दफ़न होता,
तुम न होते , कुछ न होता।

भूख होती, दाना होता,
अधिक एक निवाले के लिए, पर हर्जाना होता,
लोग होते, ज़माना होता,
जो दिखा उसे सच बोला तो, हवालात भी जाना होता,
बारिश होती तो,
धूप भी खरीद कर सुखाना होता,
होता अखबार हमारा,
छपता वही जो उनको बताना होता,
तुम हो तो दामन मेरा आज बेदाग़ है,
तुम न होते , कुछ न होता ।

तुम न होते, मैं न होती,
देश होता, माँ न होती ।
है गौरव तू हिन्द का,
जहाँ नस - नस में गंगा - जमुनी तहज़ीब बहती है,
यहाँ गोली सीने पर एक की लगती है, और दो दो माँएं रोती हैं।
आबरू मेरी, हर पल मांगे लहु तेरा,
तूने आँचल भी सर से सरकने न दिया,
आज़ादी होती, साल  70 न होता,
तुम न होते , कुछ न होता।।

Wednesday, 10 August 2016

थोड़ा इंतज़ार करो...

जो बीत गया, उसपर न आंसुओं को ज़ार ज़ार करो,
फिर नई सुबह होगी, थोडा इंतज़ार करो।

रंगीनियत परदे पर जो न आ सकी, कोई बात नहीं,
रह परदे के पीछे ही, आगे का इंतज़ाम करो।

बहुतों ने आँसुओं से आँख सेका है,
किस्मत को सामने गली से गुज़रते देखा है,
यूँ न तरसो के रंग कब बरसेगा,
जब बरसेगा तब बरसेगा, तब तक थोडा आराम करो।

होंगे वो और जो पहले वार में चटक के टूट जाएँ,
ख़ास हो तुम, नई अदब से हुंकार भरो।

अजब नहीं, पर थोड़ी गज़ब जरूर है ये दुनिया,
सत्य का प्रमाण मांगती और अवैध को सलाम करती है,
होते कौन हो तुम इसे बदलने वाले,
जाओ जा कर अपना काम करो।

क्यों चेहरे से रोते हो,
दिल तो दिल ही है, इसे दरिया क्यों कहते हो,
कीमत हमारी आसुओं की जाननी हो तो
पहले खुद का कुछ नुक्सान करो।

राह मुश्किल किसकी न रही, पर मंज़िल परवाह करती है,
प्रहर दर प्रहर बीत गए, ये प्रहर भी बीत जायेगा,
तडक़े सूरज उठेगा , चेहरा उम्मीद का खिल जायेगा,
चलो गिरे हुए महल का नव निर्माण करो,
फिर सुबह होगी , थोड़ा इंतज़ार करो।।

Saturday, 30 July 2016

Placement का season आया है...

भागो सरपट,
दौड़ो झट झट,
काजू बादाम चट कर जाओ,
जाओ हर एक सवाल रट रट,
Placement का season आया भइया,
Apti, english घोल कर पी जाओ घट घट।
सूट बूट सब पॉलिश कर लो,
नया रुमाल जेब में भर लो,
टॉम क्रूस नहीं, थोडा बालों को तुम सेहवाग सा कर लो,
अरे अरे, resume देख संभल के भर लो,
चाल ढाल थोड़ी सी बदल लो,
Gk भी थोडा तुम पढ़ लो,
गर्ल फ्रेंड से थोडा झगड़ लो,
महीने भर उसे offline कर लो,
Janu ,baby ,shona छोड़ो,
Java, c, c++ कर लो,
तोड़ के रिश्ता rum , बोतल से,
Subject knowledge थोडा improve कर लो,
ये मौसम है placement ka,
तुम भी अपनी झोली भर लो।

Friday, 29 July 2016

आज चाँद पर पहुँचा कोई...


आज चाँद पर पहुँचा कोई, दुनिया में उसका नाम हो गया,
इधर दाम बढे हैं भाजी के, आज रोटी गुड़ से ही अपना काम हो गया।

मच्छड़ों का जुलूस निकला है, odomos लगाये फिरता हर कोई,
हमने बस मचरदानी लगायी , और मच्छड़ों का काम तमाम हो गया।

फेयरनेस क्रीम आजकल, अलग मर्दों की औरतों की अलग आती है,
हमने साबुन ही ऐसा मला की आदमी आम से खास हो गया।

बच्चा क्या जाने कि बचपना क्या होता है,
जब लालटेन जला के अपने बच्चे को क ख ग सिखाया , तब उसे बचपन का एहसास हो गया ।

छत पर आये तारों की गणना करनी थी मुझे ,
इसी शौक के आगे तो ac ,पंखा सब बेकाम हो गया।

ऐ "आम" तू बस फलों का ही राजा है,
एक दिन रूह अपनी आदमियों में फूँक दी जो,
देख तेरे भी गले में लगाम हो गया।

अब तक तो बस लत शराब की, हमें खराब लगती थी,
लो आज से दाल खाना भी हराम हो गया।

दबाती है सल्तनत हमें, हम भी जी हुज़ूरी से लाचार हैं,
कहीं कुछ ऐसा न कर जाये "कुमार" कि,
अखबारें चीख उठे कि आज एक आम आदमी शैतान हो गया।।

Monday, 25 July 2016

उनकी हालत पर बड़ा तरस आया...

अरे सुनो भाई, जल्दी आओ,
काम सारे छोड़के आओ,
मुन्नी, चिंटु, तुम भी आओ
मम्मी पापा को साथ ले आओ,
टन टन वाली घंटी नहीं,
अरे कोई वो लाल वाला साईरन बजाओ,
घर घर हमरी आवाज़ पहुचाओ,
इकबाल हो, या हो फैज़ल, या मियां इमाम,
भगत हो, या हीरालाल, या चौधरी घनश्याम,
सिख हो ईसाई, हो सनातन या इस्लाम,
चलो जल्दी, पहले इससे की हो जाये काम तमाम,
देखो अपनी पड़ोसी की हालात क्या हो गयी भगवान,
असाध्य हो गया रोग, जो था मर्ज़ एक आम
न दवा काम करती , अब तो बस दुआ का ही नाम।।

शरीर से तो पहले ही लाचार थे बेचारे,
चलते भी थे ,तो मेड इन चाइना वाली छड़ी के सहारे,
मानसिक संतुलन भी आज उनका डगमगाया हुआ पाया,
जब उन्होंने कश्मीर को अपने परिवार में गिनाया,
कश्मीर हमारा है , प्राणों से भी प्यारा है,
लगातार ऐसा नारा लगाया,
कसम खुदा की, उनकी हालत पर बड़ा तरस आया।।

बेटे भी उनके कद काठी में अच्छे , पर रास्ते पर गलत चल दिए हैं,
कहाँ बूढ़े को सहारा देते, बेड़ियों से कदम बाँध, गम दिए हैं,
खुद ही खुद में लड़ते रहते,  धर्म जात न कोई भिन्न,
कलम जिन हाथों में होना था, वहाँ मिलते हैं, बारूद के चिह्न,
आज बात बात पे लड़ लड़ मरते हैं,
वजह लश्कर के नाम बाप का खराब करते हैं,
देखो बच्चों , रो रो के आँखे मेरी सूझ गयी,
हमारे पड़ोस की रौशनी ही लगता है बुझ गयी,
हाय कश्मीर, मेरा कश्मीर जो नारा लगाया,
कसम खुदा की, उनकी हालत पर बड़ा तरस आया।।

कई दफा हमने भी हाथ अमन का बढ़ाया था,
धर्म पडोसी का बखूबी निभाया था,
कई दफा अपने घर भी बुलाया था,
संग अपनों के घुलाया मिलाया था,
होते शक्कर की ढेली या बोरी नमक की तो बात और थी,
पर कहाँ  कोई संगो ख़िश्त कभी पिघलता है,
आज उनके ज़ख्म पर देखो ये बादल भी बरस आया,
उनकी हालत पर आज बड़ा तरस आया।।

Wednesday, 13 July 2016

मुझे सोने दे....

वो आई थी, भर हुस्न का प्याला लायी थी,
वो आई थी, खोलने मेरे किस्मत का ताला आई थी,
मैंने कहा , मुझे सोने दे।

पापड़ मैंने बेले कितने तेरे पीछे, तुमने ख़रीदे होते काश,
आज भी छत पे सूख रहे वे,  हैं जैसे ज़िंदा लाश,
जवानी की मेहनत तो दगा दे गयी,
अब नींद मिली है किस्मत से,
"क्या होता जो तुम होती" , ऐसे ही सपने में खोने दे,
मुझे सोने दे।

दो रोज़ पहले कुछ लोग आये थे,
सूरत भले मानुस की, सीरत चोरों की लाये थे,
निकाल चाकू चीख उठे, बोले, "हिलोगे तो फिर कभी हिल न पाओगे" ,
मैं बोला, "भई ले जा जो लेना है, पर चीख पुकार न होने दे" ,
मुझे सोने दे।

देश में बड़ी लूट- पिटाई आज है,
सरकार के नाम पर, मिली भगतों का राज है,
आज ये आउट तो कल उसके सर ताज है,
जो लड़कियां अपनी मर्ज़ी की पहने, तो बेशर्म,
और मर्द निहारें, बगल की बहु - बेटी,
उन्हें नहीं कोई लाज है,
भाई बंद करो ये समाचार, ये तुच्छ विचार,
किसान गरीब मरता है,  रोता है उसका बच्चा तो उसे भूखा रोने दे,
मुझे सोने दे।

कोई विदेश दौरा करता ,
कोई घर - घर दौड़ा करता,
कोई विलायती पानी पीता,
कोई झोपड़ी - झुग्गी में चाय,
लोगों से घर वापसी कराते,
है पर इनका एक ही समुदाय,
खैर , जो होता है होने दे,
मुझे सोने दे।

जो शांत है, असमर्थ नहीं,
सेहनशीलता कभी भी व्यर्थ नहीं,
भड़क उठी जन- ज्वाला जिस दिन,
खेल खूनी होगा जरूर,
क्योंकि जोकों पर नमक डालना ,कोई अनर्थ नहीं,
एक नयी क्रांति के लिए तैयार मुझे होने दे,
नए प्रकाश में जगना है कल,
इसलिए मुझे सोने दे।।

Tuesday, 12 July 2016

हम तो विफल रहे, पर तुम्हे सफल बनना होगा...

साँचा हमारा होगा,
तुम्हे उस साँचे में ढलना होगा,
कदम तुम्हारे होंगे लेकिन,
हमारे बताये राह पर चलना होगा,
हम तो विफल रहे, पर सफल तुम्हे बनना होगा।

हमने क्या किया, क्या करने से चूक गए,
वक्त और उम्र कहाँ तुम्हारी, कि जान सको,
बुढ़ापे का सम्बल तुम्हे हमारा बनना होगा,
हम तो विफल रहे , पर सफल तुम्हे बनना होगा।

जो चाहिए मिलेगा,
साल -दो साल चेहरे पर तुम्हारे अगर हँसी की रेखा न हो, चलेगा,
जो न कर सके मेरे परिचित के सगे साथी भी,
वैसा कुछ तुम्हे करना होगा,
हम तो विफल रहे, पर सफल तुम्हे बनना होगा।

नाक मेरी मुझे प्यारी सबसे,
बच्चे मेरे कुछ ऐसा कर
नज़र मेरी कभी झुक न पाये,
ताव रहे हर दम मूछों पर,
रीढ़ दम्भ में डूबी हो,
और नीचे न हो कभी ये सर,
ढाई आखर से बचना है , तुझे अपने क्षेत्र में पंडित बनना होगा,
हम तो विफल रह गए, पर तुम्हे सफल बनना होगा।

कभी दुःख कोई , हो तकलीफ कोई बेटा,
तो ज़िंदा तुम्हारा बाप है,
पर ये भी याद रखना ज़रा कि
90 से कम तो पाप है,
और पाप किया अगर जो तो भागीदार हम नहीं,
खुद तुम्हे अकेले अंगारों पर चलना होगा,
हम तो विफल रहे, मगर तुम्हे सफल बनना होगा।।

Tuesday, 5 July 2016

आपकी उम्मीद में उनकी उम्मीद का संघार न होता.....

जो न आना था अबकी बार इस पार, तो चिट्ठी -पत्री -तार कर देते,
आपकी उम्मीद में  उनकी उम्मीदों का संघार न होता।।

भला तो यूँ होता की बद्दुआ ही असर किसी की हम पर कर जाती,
कमसकम मेरी वजह से उनका जीवन तो उजाड़ न होता।।

धक्के खा चुके हैं पहले भी, हम तो अब भी संभल जाएं मगर,
किसी अपने के चश्मे - तर का एहसास दिलाती ये बूंदे, काश ! ये महीना आषाढ़ न होता।।

नूर में आपके कुछ यूँ खोए, की चाँद पूनम का दिखा ही नहीं,
कोई थमा जाता अंधे को लाठी अगर, तो शायद उनके आज उनके कलेजे पर दुःखों का पहाड़ न होता।।

मज़े मज़े में जिंदगी मज़ा ले गयी,
उनकी ज़िन्दगी बच सकती थी फिर  भी , गर पहले जानते की ऐसी गलतियों का सुधार  न होता।।

Saturday, 2 July 2016

दिल को समझाए कौन...

कहे सुने की बात है,
वो कमल सी नयनों वाली,
पर बिन देखे, माने कौन?
पैमाने का छल छल अब नीरस,
रस तो उनकी आँखों में ,
होते रसिक तो बात और थी,
पर बिन पिए रस की मर्यादा पहचाने कौन?
रह जाते अभागे, तो अच्छा होता,
क्यों दर्शन उनकेे हो गए,
अब बार बार गुब्बार उठता है,
अब निश्छल मन को बहलाये कौन?

यूँ तो नज़रें गली-मोहल्ले की,
आपकी राह तकती हैं
पर आपने हमारे बगल से गुज़रना चाहा,
अब अपनी किस्मत को अपना माने कौन?
मान ,प्रतिष्ठा , रकमें, शोहरतें,
ये तो लकीरों में गुदी होती हैं,
मगर जो कभी दिल पर, नई एक लकीर बने
फिर दिल -ऐ- नादान को फुसलाये कौन?
रोमियो, राँझा, मजनू, होंगे उस्ताद बड़े मगर,
बौने उनके सामने हम भी नहीं,
अब खुद से खुद की तारीफ सुनाये कौन?

कसमें, वादे ,रस्मों - रिवाज़,
न रखते किसी की भी हैसियत ही हम,
निभ गयी तो मालिक अल्लाह, जो न निभ सकी तो,
फिर अपना चेहरा फिरे छिपाये कौन?
हँस के जो दिल बहलाया आपने,
बड़प्पन समझूँ या बचपना आपका,
दिल्लगी तो सभी करते यहां अक्सर,
पर दिल -लगाना आखिर सिखाये कौन?
अब लगा अगर ये दिल यहाँ,
तो जले होंगे कुछ दिल वहाँ,
अपनी जो झोपड़ भी बसे तो
बाकियों को अपने मकान में भी चैन कहाँ,
दिल तो बहल ही जायेगा आज नहीं तो कल,
पर पड़ोसियों से दुशमनी निभाए कौन??

Monday, 27 June 2016

जो तुम आते ....

कब घुंघरुओं के अवकाश से , नर्तकी के कदम थमे?
कब  दो सितारों में पड़ी दरार से, नक्षत्र नहीं बने?
फुरसत कहाँ इतनी किसको , जो फुसलाये,
इन बड़ो की भीड़ में, दिल कहाँ कोई बच्चा है?
जो तुम आते तो अच्छा था,
जो न आये तो भी अच्छा है।।

कब कुछ युवा वृक्षों की कटाई पर, सावन आंसू ही झड़ता है?
कुछ हज़ार किरणे भी गर, सूरज से रूठ जाएँ,
क्या तिल भर भी फर्क उसे पड़ता है?
क्यों रोते हो बिलख बिलख कर,
जो बीत गया वो झूठा था, अब पहचानों कौन सच्चा है,
चीखो ज़ोर , सुकून मिलेगा,
जो तुम आते तो अच्छा था,
जो न आये तो भी अच्छा है।।

कब बिन छाया, बिन ताल, पथिक को मंज़िल मिली नहीं?
कब बिन घरनी के व्रत-पूजा, पति की आयु क्षणिक रही?
कब बिन मर्यादा पुरुषोत्तम , ही अयोध्या की साँसें थमीं?
कब बिन द्रोण-शिक्षा ही, एकलव्य की दृढ़ता नीर बनी?
ये चक्र ही कुछ ऐसा है,
निवेदन करूँगा एक बार,
पर मैं गिड़गिड़ाऊँगा? क्यों तुम्हें ऐसा लगता है?
कहूँगा इतना बस,
जो तुम आते तो अच्छा था,
जो न आये तो भी अच्छा है।।

Friday, 24 June 2016

कलम की स्याही सूख गयी....

अभी तो बहुत कुछ करना था,
पंक्ति बद्ध धीरे धीरे आगे बढ़ना था,
मगर साथ जिसका थामा, देखो वो ही हमसे रूठ गयी,
कलम की स्याही सूख गयी।।

कोई शर्माता है, कोई छुपाता है
मैं कहूँगा मगर,
हमने भी रंगों से दुनिया अपनी सजाई थी,
जी हाँ, जवानी हमारे भी डाल पर आई थी,
सच मान बैठा मैं जो उसके कस्मे ,किस्से,
वो सारी झूठ भईं,
कलम की स्याही सूख गयी।।

मन में ही सही, महल तो मैंने भी बनाया था,
बाग़, बगीचे, बिस्तर, बड़े शौक से सजाया था,
जानूँ क्या मैं, बाजु का स्वर्ण महल तुझे भा जायेगा, सीरत और नीयत तेरी पल में झुक गयी,
कलम की स्याही सूख गयी।।

हिम्मत भी कहाँ कुछ बूँद बची,
अब इंतेकाम पर जाये कौन?
मंज़िल की तलाश में पंक्तियाँ मेरी अब भी,
इन पर पूर्ण विराम लगाये कौन?
समझा जिसे निवारण, वो पीड़ा हर सांस में फूँक गयी,
कलम की स्याही सूख गयी।।

किसी गुमशुदा की खोज में....

थक हारे मांदे , भर दिन , सूरज के छर्रों को झेला,
बहाऊँ क्या मैं , क्या मैं पोछूँ,
पसीना, आंसू..... कीमत एक ही, एक ही खेला,
बड़ी देर कर दी मेहरबान ,
पर आ ही गयी अब वो बेला
नीचे खाट, ऊपर बिछौना , ऊपर हम, और हमरे ऊपर
पलके झपकाते तारों का मेला

पर हादसा - सा कुछ हुआ,
आलिंगन फैलाये खड़ी थी
वो नींद , दे गयी बद्दुआ,
खाट छोड़ा उठ खड़ा मैं जोश में,
किसी गुमशुदा की खोज में।।

किस्सा न याद आये पुराना,
कुछ संजोई, कुछ पिरोई, अब धुंधली
यादों पर से पड़ेगा ये गर्द हटाना,
तीली बारी,मोम जलाया,
इधर मैं जलूं ,उधर वो जले,
साथी मैने उस में पाया,
पर वो अक्ल का मालिक
पिघल कर शांत कर लेता जलन अपने होश में,
हर ले मेरे भी जलन को जो,
हूँ पड़ा उस
गुमशुदा की खोज में।।

हर कड़ी से कड़ी जोड़ते हैं,
वो कहने वाले न कोई  मौका छोड़ते हैं,
छूट जाते खुद ही वो पीछे तो अच्छा होता,
दाग चेहरे के तो गिना जाता कोई अपना भी ,
मगर होता तो सच्चा होता।
झेला थपेड़े खेत में,
कभी बैलों  के पीछे भागता
पैर छिल गए  चलते चलते रेत में,
हूँ खोजता है मैं नर्म स्पर्श
आज अपने चोट और खरोच में,
हूँ मैं किसी गुमशुदा की खोज में।।
किसी गुमशुदा की खोज में।।

आज चाँद नहीं आया...

अम्मा देखो, गज़ब हो गया,
अट्टरिये पर कल जो आया था,
वो चाँद जाने कहाँ खो गया।

सूरज तो हर दिन आता है ,गुस्से से जलता जाता है,
थक जाता फिर , दास निशा का बन जाता है
आसमान भी  निशा से डरकर
काले  चादर के पीछे छिप जाता है
मगर आज ये  चादर है क्यों बेदाग़ इतना ?
मानो जैसे नर्तकी के कदम थिरके , पर घुंघरुओं पर हो सन्नाटा छाया,
आज चाँद नहीं आया।।

चुपके  चुपके आता था,
पिटारा अपना फैलाता था,
जादुई पिटारे से, तारों में प्राण भर जाता था,
हस्ते मुस्काते तारे कितने,
यह देख वो भी खुश हो जाता था
पर देख माँ,
आज ये तारे कैसे आँखें मीचें बैठे हैं,
क्यों आज उलटी पड़ी है सृष्टि की काया,
आज चाँद नहीं आया।।

कल कुछ बच्चे उसे चिढ़ा रहे थे,
उसके चेहरे के दागों पर नमक उड़ा रहे थे,
लगता है उन लोगों  ने मेरे मित्र को है ठेस पहुँचाया,
इसी वजह से शायद,
आज चाँद नहीं आया।।

पुती पड़ी है कालिख देखो,
अब हर चेहरे, हर दीवार पर,
सज धज कर जो बाहर निकली नायिका,
कालिख उसके भी श्रृंगार पर,
एक अंधे के जीवन का तम
देखो ,आज सारे संसार पर
आज सारे संसार पर।

अँधेरे में है आज , वो सारे कस्मे, वो वायदे,
अँधेरे में है आज , सारे कानून - कायदे,
अँधेरे में है आज, मोहोब्बत हमारी,
अँधेरे में है आज, इबादत तुम्हारी,
और अँधेरे में ही रह गयी , शहादत हमारी।।

शोख मनाता फिरता होगा कहीं,
के मन के तम को वो हर न पाया,
इसिलए
आज चाँद नहीं आया।।